Sunday, September 4, 2011

मच्छरदानी







मच्छरदानी
आज सुबह जब हमारी आँख नींद में खुली,
             हमारी भारी भरकम काया जब नींद मे हिली !
ऐसा लगा मानो रात्रि में कुछ घट गया हो,
             हमारे शरीर का कोई हिस्सा ही कट गया हो !

बायॉ पैर अपने दर्द की कह रहा था कहानी ,
             सूजन से भी याद आ रही थी घुटने को नानी !
कूल्हे व कंधे का था बहुत बुरा हाल,
             दिमाग में उठ रहे थे ढेर सारे सवाल !

क्यूँ, कहाँ, और कब,
             किस तरह हो गया ये सब ! 
तब मुझे याद आया कि कल रात,
             मै कुछ ज्यादा ही पी आया !

इसी बेहोशी मेँ मच्छरदानी लगाना गया भूल,
             बिजली तो पहले से ही हो रक्खी थी गुल !
इसी बात का मच्छरों ने जम कर फायदा उठाया,
             और हमारे शरीर को न जाने कहाँ - कहाँ काट खाया !

तौबा करता हूँ की अब कभी भी नहीं पीऊँगा,
             इन खूनी मच्छरों को पास न फटकने दूँगा !
बिजली रहे चाहे हो जाए गुल ,
             मच्छरदानी लगाना कभी नहीं भूलूँगा !

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